१४ फरवरी, १९७३

 

छोटे बच्चों के साथ काम की व्यवस्था की निरंतरता बनाये

रखने के बारे माताजी ने कहा :

 

लेकिन एक बात है, एक बात है जो मुख्य कठिनाई हैं : वे हैं मां-बाप । जब बच्चे मां-बाप के साध रहते हैं तो मैं उसे बिलकुल आशाविहीन मानती हूं, क्योंकि मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चे को वैसी हीं शिक्षा मिले जैसी स्वयं उन्हें मिली थीं, और है चाहते हैं कि उन्हें अच्छी नौकरी मिल जाये, और है पैसा कामनायें-वे सभी चीजें हों जो हमारी अभीप्सा से उल्टी हैं ।

 

    जो बच्चे अपने मां-बाप के साथ रहते हैं... वास्तव में, मुह्मे पता नहीं क्या किया जाये । मां-बाप का उनपर बहुत प्रभाव होता हैं और अंत में है उन्हें कहीं और, किसी अन्य विद्यालय में जाने के लिये कहते हैं ।

 

    और यह, सब कठिनाइयों से-सबसे- यह सबसे बढ़ी कठिनाई है : मां-बाप का प्रभाव । और अगर हम उस प्रभाव के विरुद्ध क्रिया करें तो मां-बाप हमसे घृणा करने लगेंगे और तब स्थिति पहले से भी खराब होगी, क्योंकि वे हमारे विरुद्ध अप्रिय बातें कहेंगे । लो बस ।

 

    यह मेरा अनुभव है । सौ में से निन्यानवे बच्चों ने मां-बाप के कारण कुमार्ग लिया है!

 

   मुझे यह अनिवार्य लगता है । हमें एक परिपत्र भेजना चाहिये : ''जो मां-बाप यह चाहते हैं कि उनके बच्चों को साधारण रीति सें शिक्षा मिले और वे अच्छी नौकरी पाने के लिये, अपनी आजीविका के लिये और शानदार जीवन के लिये पढ़ें, उन्हें अपने बच्चों को यहां न भेजना चाहिये । '' लो बस ।

 

   हमें करना चाहिये... । और यह बहुत जरूरी हैं ।

 

    देखो, ऐसे बहुत-से, हां, बहुत-से मां-बाप हैं जो अपने बच्चों को यहां इसलिये भेजते हैं कि यहां और जगहों से कम खर्च पड़ता है । और यह सबसे खराब हैं, सबसे खराब । हमें... हमें... हमें उनसे कहना होगा : '' अगर तुम अपने बच्चों को शानदार जीवन के लिये शिक्षा देना चाहते हो, चाहते हों कि वे धन कलाएं तो उन्हें यहां मत भेजों । '' लो बस ।

 

    'क' : माताजी हम एक परिपत्र तैयार करेंगे  मै आपको दिखा क्या! मैं 'ख' आदि के सक् मिलकर तैयार करुंगा '

 

 ऐसे बच्चे थे जो बहुत अच्छी तरह चल रहे थे और यहां बहुत खुश थे । है  छुट्टियों में

 

 


मां-बाप के पास गये और बिलकुल बदलकर और निगमकर लोटे । और तब अगर हम उनसे यह बात कहें तो यह और भी बुरी बात होगी क्योंकि तब मां-बाप उनसे कहेंगे : '' ओह, ये लोग बुरे हैं, ये तुम्हें हमारे विरुद्ध कर रहे हैं । '' तो होना यह चाहिये... मां-बाप बच्चों को यहां भेजे उससे पहले उन्हें पता होना चाहिये ।

 

मेरा यह अनुभव बरसों से, बरसों से, इतने बरसों से रहा है, इतने बरसों से! खतरा बच्चों से नहीं है, आलस्य से नहीं है, यह बात भी नहीं है कि बच्चे विद्रोही हैं : संकट, महासंकट हैं मां-बाप ।

 

   जो लोग अपने बच्चों को यहां भेजे उन्हें समझ-बूझकर भेजना चाहिये, वे बच्चों को यहां इसलिये भेजे क्योंकि यह अन्य सभी स्थानों से भिन्न है । और बहुत-से ऐसे हैं जो नहीं आयेंगे... । और जो केवल इसलिये आते हैं कि यहां खर्च कम है, हां तो, वे भेजना बंद कर देंगे ।

 

 जब अध्यापक चलने को हुआ तो माताजी ने कहा

 

 मैं चाहूंगी... मैं चाहूंगी बच्चे यहां भेजने से पहले लोगों को हमारे विद्यालय की वृत्ति का पता हो, क्योंकि वह एक बुरी अवस्था होती है जब बच्चे खुश हैं पर मां-बाप खुश नहीं होते; और इससे बड़ी ऊट-पटांग और कभी-कभी खतरनाक परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं । यह बहुत जरूरी हैं, बहुत जरूरी!

 

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